आज के इस आर्टिकल में वर्ण के पहले प्रकार स्वर वर्ण के बारे में बताया गया हैं। जिसमे आप स्वर वर्ण किसे कहते हैं, स्वर की परिभाषा क्या होती हैं और स्वर के कितने प्रकार होते हैं आदि इन सभी चीजों के बारे में पढ़ सकते हैं।
स्वर किसे कहते हैं और स्वर की परिभाषा और प्रकार क्या होती हैं।
हमने अपने पिछले आर्टिकल में पढ़ा था की वर्ण के दो भेद होते हैं –
1 . स्वर वर्ण
2 . व्यंजन वर्ण
-: स्वर वर्ण की परिभाषा :-
स्वर वर्ण (Swar Varn) – स्वर वर्ण उस वर्ण को कहा जाता है, जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता हैं।
स्वर वर्ण के उदाहरण – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
ये ‘स्वर’ वर्ण ‘व्यंजन’ वर्ण के उच्चारण में सहायक होते हैं। स्वर वर्ण के उच्चारण में फेफ़ड़ों की हवा बिना किसी रुकावट के बाहर निकलती है।
अलग-अलग ‘स्वर’ वर्णो के उच्चारण में अलग-अलग समय लगता हैं। कुछ स्वरों का उच्चारण हल्का और काम समय में होता है, कुछ स्वरों के उच्चारण में लम्बा समय लगता है।
स्वर के कितने प्रकार होते हैं। – Swar Ke kitne Bhed Hain
उच्चारण के विचार से स्वर वर्ण के तीन भेद होते हैं –
1 . ह्रस्व स्वर – जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे या जिसका उच्चारण हल्का हो, उसे ह्रस्व स्वर कहते हैं।
जैसे – अ, इ, उ, ऋ।
👉 ह्रस्व स्वर को ‘मूल’ स्वर भी कहा जाता हैं।
2 . दीर्घ स्वर – जिस स्वर वर्ण के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दो गुना समय लगे, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं।
जैसे – आ, ई, ऊ।
👉 दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्स्व से लगभग दो गुना समय लगता है। दीर्घ स्वरों का उच्चारण ह्स्व की अपेक्षा लम्बा और ऊँचा होता हैं।
3 . प्लुत स्वर – जिस स्वर वर्ण के उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा तिगुना समय लगे, उसे प्लुत स्वर कहते हैं।
जैसे – हे राम३।
👉 इस तरह के स्वरों का व्यवहार पुकारने या चिल्लाने में अधिक होता है।
👉 प्लुत स्वर में हिंदी का तीन ३ (Three) लगाया जाता हैं इसका अर्थ होता हैं तिगुना समय का लगना।
ये ऊपर दिए गए तीन प्रकार के स्वर वर्ण के मुख्य भेद हैं अब हम बाकि बचे दो स्वर वर्ण के बारे में भी पढ़ लेते हैं।
4 . अनुनासिक स्वर – जब स्वर वर्ण का उच्चारण नाक से किया जाता हैं, तो उसे अनुनासिक स्वर वर्ण कहा जाता हैं। जब स्वर का उच्चारण ‘नाक’ से होता है, तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु ( ँ) लगाया जाता हैं।
जैसे – आँगन, अँधेरा, दाँत, गाँव आदि।
5 . सयुंक्त स्वर – वह स्वर वर्ण जो दो या दो से अधिक स्वर वर्णों के मिलने से बनता हैं, उसे सयुंक्त स्वर वर्ण कहा जाता हैं।
जैसे –
अ, आ + इ, ई = ए
अ, आ + उ, ऊ = ओ
अ, आ + ए, ऐ = ऐ
अ, आ + ओ, औ = औ
अ + ां = अं
अ + : = अः
स्वर वर्ण की मात्राएँ
‘स्वर’ वर्ण जब ‘व्यंजन’ वर्ण के साथ प्रयोग में लाये जाते हैं, तब उनका प्रयोग सीधे नहीं करके मात्राओं के रूप में किया जाता है। स्वरों की मात्राएँ इस प्रकार हैं।
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ | अं | अः |
कोई मात्रा नहीं | ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ | ं | ाः |
‘अ’ स्वर की मात्रा नहीं होती है। ‘अ’ से रहित ‘व्यंजन’ ‘हलन्त’ कहे जाते हैं, जो इस प्रकार लिखे जाते हैं –
क ् च ् म ् त ् प ् आदि।
‘अ’ स्वर मिले हुए ‘व्यंजन’ वर्ण इस प्रकार लिखे जाते हैं।
क, च, म, त, प आदि।
Final Thoughts –
आप यह हिंदी व्याकरण के भागों को भी पढ़े –
- व्याकरण | भाषा | वर्ण | स्वर वर्ण | व्यंजन वर्ण | शब्द | वाक्य | संधि | स्वर संधि | व्यंजन संधि | विसर्ग संधि | लिंग | वचन | कारक
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